Sunday 2 August 2020

प्रभु वंदना




अब सुरक्षा के लिए, कैसे गहूँ प्रभु के चरण।
हो गई व्याकुल धरा, इंसान का हो अवतरण।। 


विकट संकट विकल जन, तंद्रित पड़ा चिंतन गहन
रक्तबीजी व्याधियाँ, करने लगी मानव दलन।
चित्त मन अचरज भरा, संबंध से रीता भवन
खुदकुशी करने चला, मधुमास का शीतल पवन।।


राह में वैतरणियाँ, कैसे करेंगे संतरण।
अब सुरक्षा के लिए, कैसे गहूँ प्रभु के चरण।। 


जीत पशुता का समर, हमने किया करुणा वपन,
दैन्य दुख अपमान भय, हारे सभी कुत्सित सपन।
श्रम फला मानव हँसा, छूने लगी प्रकृति चरन,
अर्थ पौरुष सिर चढ़ा, करने लगा मानव दमन।। 


नव कुटुम्बों ने चखा, सत्ता का सुस्वादु लवण।
अब सुरक्षा के लिए, कैसे गहूँ प्रभु के चरण।। 


दहकने उर में लगी, विद्वेष की भारी अगन,
वज्र भी गलने लगा, अन्याय की पाकर तपन।
सत्य का व्यापार फल, पाने लगा अनृत सदन,
मूल मानव मूल्य का, धारक सहित होता पतन।।


ज्ञेय ने अज्ञेय का, कर लिया सामाजिक वरण।
अब सुरक्षा के लिए, कैसे गहूँ प्रभु के चरण ।।


 *** डॉ. मदन मोहन शर्मा ***
सवाई माधोपुर, राजस्थान

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