Sunday, 9 August 2020

रोटी कपड़ा और मकान

 

बहुत जरूरी है मानव को,
रोटी कपड़ा और मकान।
प्राणों की रक्षा हो इनसे,
बना रहे थोड़ा सम्मान।।

 

दौड़-धूप सब इसीलिए है,
चलता जीवन का व्यापार।
तिकड़मबाजी जो कर लेते,
उनके घर इनका अम्बार।।

 

भाग्यहीन वह भी कब पाता,
झेल रहा पल-पल अपमान।
बहुत बुरी लगती यह दुनिया,
जीवन लगता है शमशान।।

 

भटक रहे हैं कोटि-कोटि जन,
शरण-स्थली उनका फुटपाथ।
क्या जानें क्यों कृपा न करते,
थोड़ी भी उन पर रघुनाथ।।

 

सबकी चाहत अपना घर हो,
कच्चा-पक्का आलीशान ।
सरकारें भी चाह रही हैं,
हर मानव को मिले मकान।।

 

कुछ ईंटों को जोड़ बनाया,
हमने अपना नया मकान।
कर्जे की किस्तों का झंझट,
सूदखोर करता अपमान।।

 

तनखा थोड़ी झंझट ज्यादा,
ज्ञानवान लगता नादान।
नहीं बनाना, कर्जा लेकर,
कभी भूलकर मित्र मकान।।

~~~~~~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

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