धेनु चरावत श्याम पिया सुर बासुरि राह बताय रही।
काँध धरे लकुटी पटुका अँगिया शुभ पीत लुभाय रही।
कुंडल कुंचित केश कपोलन प्रीति सुधा छलकाय रही।
आँखिन के पुतरी थिरकै जनु कुंज कली मुसकाय रही।।
राग हटे न विराग सधे मन मोहक मास सुहावन में।
झूलन झूल रहीं सखियाँ मिल गीत उठे जब गाँवन में।
पेंग बढावत साँवरिया अठखेलनि हास लुभावन में।
भीग रहीं रस बूँदन वा मिल रास रचावत सावन में।।
रास रचावत गोप सखा सह नेह विदेह करे रसिया।
मीत तुम्हीं जन-जीवन के मन पावन गीत झरे रसिया।
गोकुल गाँव गली वन कुंज बसे घनश्याम हरे रसिया।
जीवत भूल सके न तुम्हें नित मोहन श्वाँस भरे रसिया।।
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***
No comments:
Post a Comment