Saturday 29 February 2020

सार छंद


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1~
ब्रह्म सत्य है जग है मिथ्या, सबने ही यह माना।
जो भी आया है इस जग में, उसे एक दिन जाना।।
जग को मायाजाल बताते, साधु संत मुनि ज्ञानी।
किंतु जगत के आकर्षण का, और न कोई सानी।।
2~
लिखा भाग्य में जिसके जो भी, वही सभी को पाना।
जग में आया मुट्ठी बाँधे, हाथ पसारे जाना।।
किंतु बदलते अपनी किस्मत, कर्मशील जो रहते।
कर्म करो फल की इच्छा बिन, गीता में प्रभु कहते।।
3~
ब्रह्म सत्य पर विद्वानों में, सदा मतैक्य रहा है।
मिथ्या जग की व्याख्या में ही, सबने अलग कहा है।।
कहें निकृष्ट निरर्थक जग को, अतिशयोक्ति में जो भी।
किंतु लिप्त हो जाते जग के, आकर्षण में वो भी।।
4~
बढ़ी आज इस मिथ्या जग में, झूठ और मक्कारी।
झूठों के बहुमत के कारण, झूठ सत्य पर भारी।।
झूठे लोग खड़े करते हैं, सदा झूठ के झंगे।
चलती रहे सियायत उनकी, वही कराते दंगे।।
5~
मिथ्या जग की बात कभी भी, पड़ी न अपने पल्ले।
क्या मिथ्या संसार मानकर, हो जाएँ सब नल्ले।।
करने को सत्कर्म जगत में, जीव जन्म ले आता।
बड़े भाग्य से सुर दुर्लभ तन, मानव का वह पाता।।


*** हरिओम श्रीवास्तव ***

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