उग आए जिह्वा पर छाले
पलकों के बंद हुए ताले,
पाँवों से रक्त बूँद रिसती
साँसों ने विकल प्राण पाले।
दृग कोरक आर्द्र सदा रहते
नित यादों के निर्झर बहते,
अन्तस्थल में हीरक कण-सी
आशाएं जीवित हैं अनंत।
कब आओगे, मेरे वसंत।।
किंशुक टेसू पाटल पराग
तितली भँवरों का मिलन राग,
वसुधा की पीत चुनरिया में
लुक छुप रतिपति का मचा फाग।
सब स्वप्न तिरोहित भूलुंठित
मुरझाए प्रीति कुसुम गुंफित,
मेरा 'मैं' मानस में छिपकर
हँसता दिखलाकर धवल दंत।
कब आओगे, मेरे वसंत।।
वासंती रंग छलका-छलका
पीयूष रूप ढलका-ढलका,
संदल-सी महकी काया का
मद अब भी है हलका-हलका।
पर काल कराल निकट आया
धुंधलाती जाती है छाया,
अस्फुट आश्वासन दे जाती
धीरे-धीरे कह, कंत-कंत!
कब आओगे, मेरे वसंत।।
*** डॉ. मदन मोहन शर्मा ***
नित यादों के निर्झर बहते,
अन्तस्थल में हीरक कण-सी
आशाएं जीवित हैं अनंत।
कब आओगे, मेरे वसंत।।
किंशुक टेसू पाटल पराग
तितली भँवरों का मिलन राग,
वसुधा की पीत चुनरिया में
लुक छुप रतिपति का मचा फाग।
सब स्वप्न तिरोहित भूलुंठित
मुरझाए प्रीति कुसुम गुंफित,
मेरा 'मैं' मानस में छिपकर
हँसता दिखलाकर धवल दंत।
कब आओगे, मेरे वसंत।।
वासंती रंग छलका-छलका
पीयूष रूप ढलका-ढलका,
संदल-सी महकी काया का
मद अब भी है हलका-हलका।
पर काल कराल निकट आया
धुंधलाती जाती है छाया,
अस्फुट आश्वासन दे जाती
धीरे-धीरे कह, कंत-कंत!
कब आओगे, मेरे वसंत।।
*** डॉ. मदन मोहन शर्मा ***
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