झाँझ मंजीरे गोपियाँ, ले आये ढप ग्वाल।
झटपट आई राधिका, झूम उठे 'गोपाल'।।
कृष्ण राधिका कर रहे, रंगों की बौछार।
ऐसे बरसा प्रेम रस, भीगा सब संसार।।
हवा हया को ले उड़े, तन मन यूँ बोराय।
होली में साजन बिना, अंग अंग अकुलाय।।
इंद्रधनुष फीका लगे, तुझ पर ऐसे रंग।
कौन खेलता रंग से, तितली तेरे संग।।
देख पूर्णिमा चाँद को, आई तेरी याद।
दिल होली से जल रहा, आस हुई प्रह्लाद।।
विजय फूल की शूल पर, याद रहे संसार।
नहीं साँच को आँच है, होली का त्योंहार।।
अभी तलक बेरंग हूँ, रंग अभी तो डाल।
तुझको भाये रंग जो , वही डाल 'गोपाल'।।
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*** आर. सी. शर्मा "गोपाल" ***
ऐसे बरसा प्रेम रस, भीगा सब संसार।।
हवा हया को ले उड़े, तन मन यूँ बोराय।
होली में साजन बिना, अंग अंग अकुलाय।।
इंद्रधनुष फीका लगे, तुझ पर ऐसे रंग।
कौन खेलता रंग से, तितली तेरे संग।।
देख पूर्णिमा चाँद को, आई तेरी याद।
दिल होली से जल रहा, आस हुई प्रह्लाद।।
विजय फूल की शूल पर, याद रहे संसार।
नहीं साँच को आँच है, होली का त्योंहार।।
अभी तलक बेरंग हूँ, रंग अभी तो डाल।
तुझको भाये रंग जो , वही डाल 'गोपाल'।।
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*** आर. सी. शर्मा "गोपाल" ***
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