जब-जब अंतर्मन में पीड़ा, करवट-करवट रोई है,
जब-जब हर्ष जुन्हाई काले, बादल-पट में खोई है।
जब-जब भावों की गगरी ने, अश्रु नीर छलकाया है,
काग़ज़ पर गीतों का मौसम मंद मंद मुस्काया है.....
कलियों ने घूंघट खोले जब, फूल हँसे अंगनाई में,
गुनगुन करता भँवरा आया, तितली की पहुनाई में।
जब बादल ने बिजुरी से मिल, सावन का संदेश दिया,
और बहारों ने गुलशन को, हँसने का आदेश दिया।
शब्दों की माला पहने जब प्रीति-दुल्हन डोली बैठी,
सुख के चार कहारों ने, हैया हो हैया गाया है...
कागज़ पर गीतों का मौसम ...
कोई पथिक पेड़ के नीचे, थक कर बैठा जब गुमसुम,
आस परी पायल छनकाती, आई है रुमझुम-रुमझुम।
धरती के आंचल पर टाँके अम्बर ने जगमग मोती,
जुगनू की आंखों में झिलमिल शुभ्र ज्योत्स्ना नित होती।
सृष्टि-नटी के कण-कण में जब, मधु-वीणा झंकार हुई,
चाँद-रात ने झीलों में जब, मधु आसव टपकाया है.....
कागज़ पर गीतों का मौसम....
और विदा का समय हुआ, संसार पराया अब लगता,
ईश-मिलन को मन का पंछी, रोज जतन कितने करता।
यमुना के तट बंशी की बस, तान सुनाई देती है,
निर्गुण ब्रह्म ज्ञान दीपक की, ज्योति दिखाई देती है।
चलाचली की बेला में जब, सांसों ने उन्मत होकर,
एक मरण-उत्सव पूरी श्रद्धा से आन मनाया है...
कागज़ पर गीतों का मौसम....
*** दीपशिखा ***
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