उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।
बह रही ज्यों धार उसके संग हरदम ही बहो तुम।।
आसमाँ में घर बनायें चाह है सबकी यही तो,
चाँद-तारे तोड़ लायें आरज़ू बस है सभी को,
क्या नहीं मुमकिन अरे पर दर्द उतना भी सहो तुम।
उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।1।
आसमाँ मिलता उसे ही जो उसे ही माँगता है,
चाह में उसकी अजी सब कुछ लुटाना चाहता है,
चाह उसकी ही करो फिर बाँह उसकी ही गहो तुम।
उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।2।
छोड़ इक दिन आसमाँ को लौट आना है धरा पर,
दो गज़ी सा इक मकाँ ही तो बनाना है धरा पर,
झूठ मैंने हो कहा तो बात सच क्या है कहो तुम।
उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।3।
*** अवधूत कुमार राठौर ***
बह रही ज्यों धार उसके संग हरदम ही बहो तुम।।
आसमाँ में घर बनायें चाह है सबकी यही तो,
चाँद-तारे तोड़ लायें आरज़ू बस है सभी को,
क्या नहीं मुमकिन अरे पर दर्द उतना भी सहो तुम।
उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।1।
आसमाँ मिलता उसे ही जो उसे ही माँगता है,
चाह में उसकी अजी सब कुछ लुटाना चाहता है,
चाह उसकी ही करो फिर बाँह उसकी ही गहो तुम।
उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।2।
छोड़ इक दिन आसमाँ को लौट आना है धरा पर,
दो गज़ी सा इक मकाँ ही तो बनाना है धरा पर,
झूठ मैंने हो कहा तो बात सच क्या है कहो तुम।
उड़ भले लो आसमाँ में यार धरती पर रहो तुम।3।
*** अवधूत कुमार राठौर ***
No comments:
Post a Comment