स्वर्णिम किरण जनी है, अनुरक्त कुंज क्यारी।
नम ओस का फुहारा, विकसित कली कुँवारी॥
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अलि चूमते अधर-दल, तितली विलास मंजुल।
मृदु मखमली बिछौनें, मकरंद-सार अंजुल।
मद वारुणी छलकती, प्याले-कुसुम सुगंधित।
शुभ भोर कौन लाया, किसकी कृपा खरारी।
नम ओस का फुहारा, विकसित कली कुँवारी॥
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है पुष्प-वाण शिल्पी, गूँथे अनंग-माली।
स्वागत बरात का हो, मधु चाँद की पियाली।
कमनीय पंखुरी-सी, घूँघट किए वधू ज्यों।
शुचि पुष्प-सेज सज्जित, संसृति समस्त वारी।
नम ओस का फुहारा, विकसित कली कुँवारी॥
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ओढ़े कफ़न तिरंगा, जब वीर कोई आए।
बरसें सुमन सलोने, राहें सजल सजाए।
माँ भारती झरे है, तब अश्रु-बिन्दु पुष्पित।
है गर्व चमन का यह, छवि छाए शुचित न्यारी।
नम ओस का फुहारा, विकसित कली कुँवारी॥
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*** सुधा अहलूवालिया ***
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