Sunday, 24 November 2019
सार छंद
धरती ने चूनर ओढ़ी है, जिसके कारण धानी।
उस जल को ही जीवन कहते, ऋषि मुनि ज्ञानी ध्यानी।।
बूँद-बूँद अनमोल धरा पर, बात सभी ने मानी।
कुदरत से उपहार अनोखा, हमें मिला है पानी।।1।।
जीवन केवल वहाँ-वहाँ है, जहाँ-जहाँ है पानी।
इसकी ही फ़िजूलखर्ची कर, मनुज करे मनमानी।।
पीने के काबिल धरती पर, ढाई प्रतिशत पानी।
देख-देख बर्बादी इसकी, होती है हैरानी।।2।।
धरती पर रहता है पानी, भिन्न-भिन्न रूपों में।
बर्फ ओस पाले में पानी, भाप नदी कूपों में।।
झील तड़ाग और झरनों में, सागर में भी पानी।
लेकिन कारण जल संकट का, फितरत है इंसानी।।3।।
उन सर सरिताओं में हमने, नित अपशिष्ट मिलाया।
जीवनदायी जल जिन सबने, हमको सदा पिलाया।।
जंगल काटे धरती को भी, कंकरीट से पाटा।
जल पहुँचा पाताल रूठकर, करके हमसे टाटा।।5।।
जीवन अगर बचाना है तो, संरक्षित अब जल हो।
वृक्ष लगा बर्बादी रोकें, तभी समस्या हल हो।।
जितने भी जंगल काटे हैं, उतने पेड़ लगाएँ।
यह संकल्प आज हम लेकर, जीवन सफल बनाएँ।।5।।
*** हरिओम श्रीवास्तव ***
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