Sunday 10 November 2019

नदी गीत


 
लहर लहर पर मचल रही है, अमिट सदी की प्यास।
प्रियतम सागर में मिल जाऊँ, विकल नदी की आस।।


ओ मछुआरे भूल न जाना, नित्य फेंककर जाल।
जीव जगत का हश्र यही है, बना न कोई ढाल।
अश्रु बहाता मीन नयन ये, मुझको है आभास।
 
प्रियतम सागर में मिल जाऊँ, विकल नदी की आस।।

चतुर सयानी ऊषा शोभित, तट पर जिसके प्रात।
गीत सिंदूरी गाती उर्मिल, दे जाती सौगात।
संत सबेरा कर्मठ साधक, उर में करे विलास।
 
प्रियतम सागर में मिल जाऊँ, विकल नदी की आस।। 

सुन प्रवाहिनी निर्झरिणी क्यूँ, बहती ले उन्माद।
जननी जैसा आँचल तेरा, मन में भरे विषाद।
नेह लुटा कल-कल निनाद से, हृदय जगा विश्वास।
 
प्रियतम सागर में मिल जाऊँ, विकल नदी की आस।। 
 
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***

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