Sunday, 4 August 2019
भीगता तन-मन चला
पग कथानक रच रहे हैं मौसमों की धार में
भीगता तन-मन चला गंतव्य को बौछार में
वेग कोई दे चुनौती चाहे आये बाढ़ - सी
वय उमंगों से भरी ही खेलती जलधार में
सावनी छाई घटा दिल खोल कर बरसे यहाँ,
झूम लेंगे मन खुशी के संग ही परिवार में
मेह को किसकी पड़ी है वो नहीं ये देखता
कौन भीगा कौन सूखा रह गया संसार में
खोल लो छतरी तुम्हारी ओढ़ लो बरसातियाँ
विघ्न बरसी ऋतु न डाले हाँफती रफ्तार में
एक पल देखो ठिठक बूँदे धरा पर नाचतीं
राग बजता मेघ का डूबा हुआ मल्हार में
*** मदन प्रकाश ***
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"फ़ायदा"
फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...

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जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
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