(विधान - सगण (११२)× 8 = 24 वर्ण प्रति चरण, 12-12 वर्ण पर यति, चार चरण सम तुकांत)
घनघोर घटा मन आँगन में, तन मोर प्रकम्पित वायु करे।
तलवार दिखाय रही चपला, यह देखि सखी मन मोर डरे।।
जब सावन में बदरा बरसे, लगता नभ नैनन नीर झरे।
मनमोहन छोड़ गये जबसे, रसना रटती हर श्वास हरे।।
बहती शुचि शीतल मंद हवा, मन गीत सुहावन गावत है।
दृग खोलि हँसे फुलवा मन के, प्रिय आय रहे बतलावत है।।
मन मोर हवा सँग में उड़ता, बँसिया ब्रजनाथ बजावत है।
अब चैन न आय उमंग भरी, लगता घनश्याम बुलावत है।।
*** चन्द्र पाल सिंह "चन्द्र" ***
तलवार दिखाय रही चपला, यह देखि सखी मन मोर डरे।।
जब सावन में बदरा बरसे, लगता नभ नैनन नीर झरे।
मनमोहन छोड़ गये जबसे, रसना रटती हर श्वास हरे।।
बहती शुचि शीतल मंद हवा, मन गीत सुहावन गावत है।
दृग खोलि हँसे फुलवा मन के, प्रिय आय रहे बतलावत है।।
मन मोर हवा सँग में उड़ता, बँसिया ब्रजनाथ बजावत है।
अब चैन न आय उमंग भरी, लगता घनश्याम बुलावत है।।
*** चन्द्र पाल सिंह "चन्द्र" ***
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