प्यार-मुहब्बत से यह दुनिया, महक रही है आज भी।
यही कहानी सब से कहता, एक अनूठा ताज भी।।
जोड़ा कोई जब-जब देखे, बोले वाह!कमाल है।
कहता है यमुना का जल भी, अद्भुत प्रेम-मिसाल हैै।।
झेल रहा सब उन्नत मस्तक, असर न छाया-धूप का।
सदियों से प्रतिबिम्ब निहारे, अपने अनुपम रूप का।।
छूकर हँसता हर मौसम पर, हुआ न मैला साज भी।
यही कहानी सबसे कहता, एक अनूठा ताज भी।।
प्राण-पखेरू जब उड़ जाते, पिंजरे रूपी देह से।
रह जाता तब सबकुछ अपना, जिसे सँवारा नेह से।।
रोता है क्यों बोलो कोई, अपने प्रिय की याद में।
सदा सँजोये रहता क्यों मन, सुधियाँ सारी बाद में।।
बिलख-बिलखकर रोने में क्यों, कभी न आती लाज भी।
यही कहानी सबसे कहता, एक अनूठा ताज भी।।
हर मज़हब से प्रेम बड़ा है, सीखो बोली प्यार की।
देकर जाएँ कभी न जग को, बातें हम तकरार की।।
आते हैं वो लोग धरा पर, ईश्वर के वरदान से।
जीते हैं जो हँसकर जीवन, मरते हैं जो शान से।।
बन जाते हैं वही प्रेम की, 'अधर' मधुर आवाज भी।
यही कहानी सब से कहता, एक अनूठा ताज भी।।
*** शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर' ***
कहता है यमुना का जल भी, अद्भुत प्रेम-मिसाल हैै।।
झेल रहा सब उन्नत मस्तक, असर न छाया-धूप का।
सदियों से प्रतिबिम्ब निहारे, अपने अनुपम रूप का।।
छूकर हँसता हर मौसम पर, हुआ न मैला साज भी।
यही कहानी सबसे कहता, एक अनूठा ताज भी।।
प्राण-पखेरू जब उड़ जाते, पिंजरे रूपी देह से।
रह जाता तब सबकुछ अपना, जिसे सँवारा नेह से।।
रोता है क्यों बोलो कोई, अपने प्रिय की याद में।
सदा सँजोये रहता क्यों मन, सुधियाँ सारी बाद में।।
बिलख-बिलखकर रोने में क्यों, कभी न आती लाज भी।
यही कहानी सबसे कहता, एक अनूठा ताज भी।।
हर मज़हब से प्रेम बड़ा है, सीखो बोली प्यार की।
देकर जाएँ कभी न जग को, बातें हम तकरार की।।
आते हैं वो लोग धरा पर, ईश्वर के वरदान से।
जीते हैं जो हँसकर जीवन, मरते हैं जो शान से।।
बन जाते हैं वही प्रेम की, 'अधर' मधुर आवाज भी।
यही कहानी सब से कहता, एक अनूठा ताज भी।।
*** शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर' ***
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