रंग मंच पर
नट नागर ये
पल पल वेश बदलते
बड़े खिलाड़ी खेल जगत के
रोज तमाशे करते
कभी बाँधते पगड़ी सिर पर
कभी पाँव में धरते
नाच रहे हैं
नचा रहे हैं
रोते कभी उछलते
कभी बने हैं राजा बाबू
रंक कभी हो जाते
कभी न्याय के कभी लूट के
सबको पाठ पढ़ाते
कभी अकेले
कभी भीड़ सँग
घर से रोज निकलते
खेल -खेल में रहे खिलाते
हारे फिर से खेले
अपनी करनी अपनी भरनी
लादे कई झमेले
खेल-खेल में
खाईं खोदें
कैसे लोग सँभलते
*** बृजनाथ श्रीवास्तव ***
रोज तमाशे करते
कभी बाँधते पगड़ी सिर पर
कभी पाँव में धरते
नाच रहे हैं
नचा रहे हैं
रोते कभी उछलते
कभी बने हैं राजा बाबू
रंक कभी हो जाते
कभी न्याय के कभी लूट के
सबको पाठ पढ़ाते
कभी अकेले
कभी भीड़ सँग
घर से रोज निकलते
खेल -खेल में रहे खिलाते
हारे फिर से खेले
अपनी करनी अपनी भरनी
लादे कई झमेले
खेल-खेल में
खाईं खोदें
कैसे लोग सँभलते
*** बृजनाथ श्रीवास्तव ***
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