पहली पहली बार हुई थीं
उनसे आँखें चार हुई थीं
बिन मौसम ऋतुराज आ गया
महक उठी थीं मंद हवाएँ
भू से नभ तक पुष्प खिल उठे
लहक उठीं तरु की शाखाएँ
आँखें उनकी सागर दिखतीं
नज़रें मधुर फुहार हुई थीं
कण-कण नवल कांति से चमका
नई-नई-सी लगीं दिशाएँ
देवलोक भू पर उतरा ज्यों
छाईं हिय पर मदिर घटाएँ
सभी कोशिशें चेतनता की
उस पल में बेकार हुई थीं
शशि ने रजनी के आँचल में
सतरंगी तारे टाँके थे
भोर-ओट से उचक-उचक कर
स्वप्न सैकड़ों ही झाँके थे
परी कथाएँ बचपन की ज्यों
सारी ही साकार हुई थीं
*** प्रताप नारायण ***
महक उठी थीं मंद हवाएँ
भू से नभ तक पुष्प खिल उठे
लहक उठीं तरु की शाखाएँ
आँखें उनकी सागर दिखतीं
नज़रें मधुर फुहार हुई थीं
कण-कण नवल कांति से चमका
नई-नई-सी लगीं दिशाएँ
देवलोक भू पर उतरा ज्यों
छाईं हिय पर मदिर घटाएँ
सभी कोशिशें चेतनता की
उस पल में बेकार हुई थीं
शशि ने रजनी के आँचल में
सतरंगी तारे टाँके थे
भोर-ओट से उचक-उचक कर
स्वप्न सैकड़ों ही झाँके थे
परी कथाएँ बचपन की ज्यों
सारी ही साकार हुई थीं
*** प्रताप नारायण ***
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