Sunday, 2 June 2019

तब हो हृदय विभोर (सरसी छन्द आधारित गीत)


नयन मौन हो देख रहे हैं, घूम-घूम चहुँ ओर।
भरी दुपहरी सड़कों पर हैं, सन्नाटे का शोर।।


घायल की हो शीघ्र चिकित्सा, पहुँचाये पर कौन।
क्षणभर में ही चीखें सारी, धारण करती मौन।
रोगी वाहन नहीं पहुँचता, जब तक होती मौत।
देख तमाशा चलते बनते, सन्ध्या हो या भोर।
नयन मौन हो देख रहे हैं, ---- - - - - -


मौन शब्द की ताकत जानें, वहीं समझते अर्थ।
मौन साधना करें वही जो, करें न ऊर्जा व्यर्थ।
पौ फटते ही दौड़े वाहन, देते चुप्पी तोड़।
कुहू कुहू के शब्दों से ही, नाचे मन का मोर।
नयन मौन हो देख रहे हैं, - - - - - - -


बढ़ा प्रदूषण कोलाहल का, समाधान गम्भीर।
खो देता है धैर्य आदमी, चुभे शोर का तीर।
पर्यावरण प्रेम का हो जब, बढ़े जगत की शान।
स्वर्णिम हो अब पुनः सदी ये, तब हो हृदय विभोर।
नयन मौन हो देख रहे हैं, सन्नाटे का शोर।

नयन मौन हो देख रहे हैं, - - - - - - -

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ***

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