Sunday, 26 May 2019
रात का दर्द
रात हूँ मैं नित्य आती सूर्य के अवसान पर।
चाँद तारे टाँकने आकाश के अवतान पर।
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झूठ कहते लोग हैं कि भोर से है दुश्मनी।
सिद्ध कर दें वे कि मेरी भोर से कब कब ठनी।
सत्य तो यह पथ हमारा एक दूजे से अलग।
इसलिए रहते हमेशा हम निरंतर हैं विलग।
एक को आराम देने दूसरा कर्तव्य रत,
गर्व होता है मुझे इस नित्य के बलिदान पर।
रात हूँ मैं नित्य आती सूर्य के अवसान पर।
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मैं तमस की मित्र हूँ तो गालियाँ मिलती मुझे।
लोग कहते क्रूर निर्मम और काली भी मुझे।
गौर हो इन्सान मेरा भक्ष्य होता है नहीं।
नाश क़ुदरत का करूँ यह लक्ष्य होता है नहीं।
मानिये अहसान मेरा विश्व के मानव सभी,
और पश्चाताप कर लें अब स्वयं अज्ञान पर।
रात हूँ मैं नित्य आती सूर्य के अवसान पर।
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कर्म गन्दे लोग करते रात का मुख देखकर।
माफ़ करिये दोष किञ्चित है नहीं मेरा मगर।
गल्तियाँ मानव करे फिर दोष क्यों है रात पर?
ध्यान दें सारे मनुज अब बैठकर इस बात पर।
बिक रही इज्ज़त किसी की बेचता यह कौन है?
गर्व कैसा कर रहा मानव इसी उत्थान पर।
रात हूँ मैं नित्य आती सूर्य के अवसान पर।
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रात हूँ मैं नित्य आती सूर्य के अवसान पर।
चाँद तारे टाँकने आकाश के अवतान पर।
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
अवतान - मंडप
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