प्रेम जनित विश्वास का, पावन सुभग चरित्र।
भाई सा जग में नहीं, रिश्ता यहाँ पवित्र।।
भाई का क्या अर्थ है, भाई का क्या मान।
लिखा धरा पर भरत ने, भाई का उपमान।।
भरत और सौमित्र का, पढ़ो जरा सा चरित्र।
भाई के शब्दार्थ को, तब समझोगे मित्र।।
हो समर्थ रिश्ता सबल, फलते स्वयं सुयोग।
मन से भ्राता शब्द का, करिए तो उपयोग।।
यदि भाई के शब्द का, रक्खा तुमने मान।
निश्चित ही संसार में, पाओगे सम्मान।।
भाई के अपवाद हैं, अनुभव में कुछ मित्र।
बालि और लंकेश का, देखो कुटिल चरित्र।।
सब धर्मों का सार है, रिश्तों का अहसास।
कभी न जग में तोड़िए, भाई का विश्वास।।
*** अनुपम आलोक ***
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