Sunday, 21 July 2019
"सजन रे झूठ मत बोलो"
"मुहब्बत की नहीं मुझसे", सजन रे झूठ मत बोलो।
लता के सम लिपट जाना, नखों से पीठ खुजलाना,
अधर से चूम लेना मुख, नयन से कुछ कहा जाना,
कभी पहना दिया हमदम, गले में हार बाहों का,
अचानक गोद में लेकर, तुम्हारा केश सहलाना,
हथेली से छुपा लेना, तुम्हारा नैन को मेरे,
इशारे प्यार के थे या, शरारत भेद यह खोलो,
"मुहब्बत की नहीं मुझसे", सजन रे झूठ मत बोलो।
तुम्हारा डाँटना या फिर ,तुम्हारी झिड़कियाँ मीठी,
ज़रा सी बात पर आँसू, बहाने के बहाने भी,
तुम्हारा हक़ जताना भी, तुम्हारी ज़िद सभी नखरे,
बताओ किस तरह मानूं, अदाओं की कलाबाज़ी,
बुने जो ख़्वाब थे हमने, हमारे आशियाने के,
प्रिये ! बरखा बिना संभव, कभी क्या बीज भी बो लो,
"मुहब्बत की नहीं मुझसे", सजन रे झूठ मत बोलो।
कठिन होगा तुम्हारे बिन, सनम हर हाल में जीना,
जुदाई का हलाहल भी, बड़ा मुश्किल यहाँ पीना,
तुम्हीं ने डोर बाँधी थी, तुम्हीं ने तोड़ क्यों डाली?
अचानक क्यों मुझे जो हक़, दिया था प्रीत का छीना?
प्रतीक्षारत रहूँगा मैं, अभी तक आस है बाकी,
क़सम है लौट आओ तुम, न जीवन में ज़हर घोलो,
"मुहब्बत की नहीं मुझसे", सजन रे झूठ मत बोलो।
*** गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी ***
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