1-
है अपना हिन्दुस्तान, जगत में न्यारा।
लगता जन-गण-मन गान, हमें अति प्यारा।।
हैं भाषा वेश अनेक, संघ का ढाँचा।
जहँ संविधान भी एक, बना है साँचा।।
2-
है लोकतंत्र की यहाँ, व्यवस्था न्यारी।
जिसमें शासन की शक्ति, वोट में सारी।।
जनता देकर निज वोट, बने बेचारी।।
इसमें यह भारी दोष, और लाचारी।।
3-
है राजनीति में आज, बहुत पौबारा।
फिरता है केवल आम, आदमी मारा।।
सब नेताओं का एक, आज का नारा।
जनता का है जो माल, हड़प लो सारा।।
4-
जो हैं घोटालेबाज, चोर आवारा।
चुन जाते हैं फिर लोग, वही दोबारा।।
नेतागण सभी समान, नहीं कुछ चारा।
चूसो जनता का खून, आज का नारा।।
5-
मैं ही हूँ सबसे श्रेष्ठ, आज का नारा।
कर दे यदि कोई प्रश्न, चढ़े फिर पारा।।
जब जैसी चाहूँ जिधर, मोड़ दूँ धारा।
मेरा ही लगता रहे, सदा जयकारा।।
*** हरिओम श्रीवास्तव ***
कीचड़ हटाने के लिए कीचड़ में उतरना पड़ता हैं
ReplyDeleteसही कहा आपने। सादर आभार आदरणीय।
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