Sunday, 4 November 2018

अंतर्वेदना का एक गीत


 
शरण नहीं निज प्यार जाँचने आए हैं।
दया नहीं अधिकार माँगने आए हैं। 


ढूँढ़-ढूँढ़ कर हार गए तेरा आँगन,
बैठ गयी फिर थके बटोही-सा साजन,
सुधियों के सब चित्र नैन में घूम गए,
बंद नयन में जब अतीत घूमा पावन। 


उन यादों की पीर तुम्हारे आँगन में,
जग से हम थक-हार टाँगने आए हैं, 

दया नहीं अधिकार माँगने आए हैं। 

निर्मोही कुछ दिशा बता दो, आ जाऊँ,
जीवन अंबर पर तेरे मैं छा जाऊँ,
आत्मसात कर तेरा सारा दर्द प्रिये,
खुशियों के नवगीत मधुर से गा जाऊँ। 


भुजपाशों में तेरे, अपने जीवन का,
सारा बोझिल भार दाबने आए हैं,
दया नहीं अधिकार माँगने आए हैं। 


प्यार नहीं तो, फिर आहें भरना कैसा,
प्रणय निवेदन छवियों से करना कैसा,
हर आगत से कुशल हमारी जब पूछी,
फिर बाँहों में भरने से डरना कैसा। 


अपनी खुशियाँ छोड़ तुम्हारी दुनिया में,
अपना हर सम्बंध बाँचने आए हैं,
दया नहीं अधिकार माँगने आए हैं। 


*** अनुपम आलोक ***

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