Sunday 18 November 2018

एक गीत - शिशु मन से मैं करता बात

 
 

किसको चिंता यहाँ उम्र की, शिशु मन से मैं करता बात,
पोती नाती के सँग बीते, जीवन का ये सुखद प्रभात।


प्रश्न पूछकर करें निरुत्तर, उलझन तब होती हर बार,
सोच सोच कर प्रश्न समझता, मन में होती तब तकरार,
बाबा-पोते झगड़ रहें क्यों, पत्नी सुन पूछे यह बात,
किसको चिंता यहाँ उम्र की, शिशु मन से मैं करता बात।


शान्त नहीं होते हैं बच्चे, बिना हुए जिज्ञासा शान्त,
चुप होने को कहता फिर मैं, मुझे चाहिए कुछ एकान्त,
तभी सुझाये माँ वीणा कुछ, जाकर तब बनती कुछ बात,

किसको चिंता यहाँ उम्र की, शिशु मन से मैं करता बात।

खिलती कलियाँ तभी देखते, जब हम करते थोड़ा त्याग,
सिद्ध करे शिशु शिक्षित बनकर, घर का बनता वही चिराग,
घर का सपना पूरा होता, मिलती तब सुंदर सौगात,
किसको चिंता यहाँ उम्र की, शिशु मन से मैं करता बात।


*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ***

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