कभी-कभी सड़क पर चलते चलते
बाज़ार, रेल,बस, सफ़र में
आ जाती है आँधी, रफ़्तार कम
दुबक कर खड़े हो जाते हैं हम
गुज़र जाने देते हैं ऊपर से
झाड़ कर कपड़े/चश्मा/बाल
बढ़ जाते हैं आगे
कभी-कभी कोई घटना/दृश्य/ख़बर
ला देता है आँधी/तूफ़ान/भूचाल
बढ़ती धड़कन/उलझन/उखड़ती साँसें
अपने घर में भी नहीं मिलता कोई कोना
जहाँ गुज़र जाने दें ऊपर से
याद कीजिए तूफ़ान से पहले की शांति
जिसके गर्भ में होती मौन/हलचल
नकारते हैं अहंकार/स्वार्थ/लापरवाही में
इसीलिए नहीं झाड़ पाते पगड़ी की धूल
किंतु चश्मे की धूल में भी
नज़र से नज़रिया साफ हो जाता है
पश्चाताप काम नहीं आता है
कभी कभी क्या,
प्रायः ऐसा ही होता है?
*** नसीर अहमद ***
उन्नाव
ला देता है आँधी/तूफ़ान/भूचाल
बढ़ती धड़कन/उलझन/उखड़ती साँसें
अपने घर में भी नहीं मिलता कोई कोना
जहाँ गुज़र जाने दें ऊपर से
याद कीजिए तूफ़ान से पहले की शांति
जिसके गर्भ में होती मौन/हलचल
नकारते हैं अहंकार/स्वार्थ/लापरवाही में
इसीलिए नहीं झाड़ पाते पगड़ी की धूल
किंतु चश्मे की धूल में भी
नज़र से नज़रिया साफ हो जाता है
पश्चाताप काम नहीं आता है
कभी कभी क्या,
प्रायः ऐसा ही होता है?
*** नसीर अहमद ***
उन्नाव
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