Sunday, 10 June 2018

सार छंद


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1.

मुरलीधर कान्हा वनवारी, चक्र सुदर्शन धारी।
माखनचोर नंद के लाला, गोवर्धन गिरधारी।।
नटवर नागर श्याम साँवरे, बलदाऊ के भैया।
मोहन माधव कृष्ण मुरारी, नटखट कृष्ण कन्हैया।।
2.
खेल-खेल में काली दह में, नाग कालिया नाथा।
जिसके नटखट बाल चरित की, अनुपम अद्भुत गाथा।।
राधा के सँग यमुना तट पर, जिसने रास रचाए।
द्रौपदि की जो लाज बचाने, दौड़े-दौड़े आए।।
3.
एक बार फिर से आ जाओ, केशव कुंज बिहारी।
पापाचार बड़े धरती पर, संकट में है नारी।।
राजनीति है छल-प्रपंच की, दुर्योधन है जिंदा।
सभी सभासद मौन हो गए, भीष्म विदुर शर्मिंदा।।
4.
कर्मयोग जग को सिखलाया, कहकर भगवद्गीता।
लेकिन अब निष्काम कर्म का, जैसे युग हो बीता।।
राजनीति का पाठ सभी को, फिर से आज पढ़ा दो।
द्रौपदियों की लाज बचाने, फिर से चीर बढ़ा दो।।
5.
जरासंघ शिशुपाल शकुनि सब, पुनः हुए बलशाली।
बाग उजाड़ रहा है केशव, स्वयं आज वनमाली।।
चक्र सुदर्शन लेकर आओ, हे गिरधर गोपाला।
तान मुरलिया की फिर छेड़ो, राह तके ब्रजबाला।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

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