Sunday 17 June 2018

कुण्डलिया - बरखा

 
आयी रिमझिम बूँद है, लिये मधुर सौगात।
नयनों के तट चूमती, कभी चूमती गात॥
कभी चूमती गात, तृषित मन प्यास बुझाती।
यादों के पट खोल, प्रीत के गीत सुनाती॥
पुष्प देख एकांत, नैन के नीर छुपायी
 
पकड़ नीम की डाल, देखती बरखा आयी

कैसे दिखलाऊँ तुम्हें, इन नैनों की पीर।
कैसे दिल रोता प्रिये, हरपल यहाँ अधीर॥
हरपल यहाँ अधीर, स्वप्न नैनों में तरसे ।
बिन बादल बरसात, आंगना मेरे बरसे॥
प्यासा मन है "पुष्प ", मिलन हो जैसे तैसे।
तुम बिन ऐ मनमीत, जिन्दगी बीते कैसे॥


मस्ती की बरसात में, आओ भीगें मित्र।
कभी चलायें नाव हम, कभी बनायें चित्र
 
कभी बनायें चित्र, टपकता घर में पानी
कभी दिखायें दृश्य, कहाँ रहती है नानी
कैसे खेत, मचान, पुष्प की कैसी बस्ती।
कैसे बच्चे रोज, करें शाला मे मस्ती

 
*** पुष्प लता शर्मा ***

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