Sunday 30 October 2016

जगमगाएँ दीप फिर

 


नेह का हम स्नेह भर दें जगमगाएँ दीप फिर
हो अगर उल्लास दिल में जगमगाएँ दीप फिर


हो अटल विश्वास ख़ुद पर राह पर जो बढ़ चलें
कर्म की जब लौ जलायें
जगमगाएँ दीप फिर

वेदना के रात दिन बहते हैं आँसू आँख से
वो ख़ुशी के गाएँ नगमें जगमगाएँ दीप फिर


बाग़ में खिलती जो कलियाँ वो अगर महफूज़ हों
तब चमन महके जहाँ में जगमगाएँ दीप फिर


दीनता लाचारगी से जी रहे जो ज़िन्दगी
जो गले उनको लगायें जगमगाएँ दीप फिर


***** प्रमिला आर्य

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