आज हृदय दो टूक हो गया।
बुनकर तार मधुर सपनों के,
इक संसार रचाया मैंने,
चुनकर हार प्रीति पुष्पों के,
बंदनवार सजाया मैंने,
मन मधुबन जब महक उठा,
तो यह कैसा स्वर पड़ा सुनायी,
मुस्कानों का गीत क्यों पल में,
दर्द भरी इक कूक हो गया।
आज हृदय दो टूक हो गया।
साक्षी हैं ये मधुर मिलन के,
तरु सरिता तट उपवन निर्झर,
रात्रि दिवस चन्द्र तारक गण,
विद्युत मेघ भूधर अरु दिनकर,
गाते निज संग हर्षित होकर,
मृग छोने शुक सारिका पर,
कोकिल का क्यों कुहू कुहू स्वर,
पीहू पीहू सी हूक हो गया।
आज हृदय दो टूक हो गया।
मेरे जीवन नाट्य मंच पर,
प्रीति नाट्य कर दिया निर्देशित,
अमित तुम्हारी कृपा के सम मैं,
भाव सुमन कर पाया न अर्पित,
रहा विधाता केवल दर्शक,
मेरे इस असफल नाटक का,
कलाकार अभिनीत करे क्या,
सूत्रधार जब मूक हो गया।
आज हृदय दो टूक हो गया।
*** गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत'
No comments:
Post a Comment