Sunday, 23 August 2015
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श्वास के सोपान को चढ़ता गया मैं - एक गीत
श्वास के सोपान को चढ़ता गया मैं। आस औ विश्वास को गढ़ता गया मैं। जन्म से ले मृत्यु तक जीवन नहर है। ठाँव हैं प्रति पलों के क्षण भर ठहर है। ज्य...
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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
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जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...

सहज साहित्य ब्लॉग में कुण्डलिया छंद को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार श्री विश्वजीत सपन जी । सादर
ReplyDeleteसादर स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी.
Deleteसादर नमन