Sunday, 30 August 2015

मज़मून - 68


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-- कह-मुकरी --
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वह जब आये मन हर्षाये,
ढेरों खुशियाँ सँग में लाये,
उससे बँधा प्रेम का बंधन,
क्या सखि साजन ? न 'रक्षाबंधन'!!


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दोहे-
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रंग-बिरंगी राखियाँ, झिलमिल हैं बाजार।
मन को अति पुलकित करे, राखी का त्योहार।।1।।


भैया तेरी याद में, बहना है बेहाल।
राखी बँधवाने यहाँ, आ जाना हर हाल।।2।।


कच्चे धागे में बँधा, बहना का ये प्यार।
माँगे भाई के लिये, खुशियों का संसार।।3।।


भैया कभी न छोड़ना, संकट में तुम साथ।
इसी आस विश्वास से, तिलक लगाया माथ।।4।।


**हरिओम श्रीवास्तव**

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