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प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...
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अंधकार ने ली विदा, ऊषा का आगाज़। धानी चूनर ओढ़ ली, धरती ने फिर आज।।1।। अम्बर से ऊषा किरण, चली धरा की ओर। दिनकर की देदीप्यता, उतरी ...
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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या बात है सपन जी भाई साहब बहुत ही कोमल और पावन भावों को आपने इन दोहों में सजाया है... यह सच है कि प्रभु स्मरण से ही सब संकटों और सब दुखों से हम दूर रह सकते हैं इसलिए हमें हर पल प्रभु का स्मरण करना चाहिए... बधाई आपको भाई साहब... सादर वंदे...
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत-बहुत आभार नवल जी। प्रभु में मन रम जाए तो इससे अच्छा क्या होगा। मन के भावों को प्रभु के समीप लाना ही उद्देश्य है। इस सुन्दर सराहना के लिए आपका दिल से आभार। सादर नमन।
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