Sunday, 30 March 2025

जीवन है संगीत - एक गीत

 

शाश्वत गुंजित प्रणवाक्षर का, सतत् चल रहा गीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से, जीवन है संगीत।
चले समीरण सर-सर सर-सर, गाती है निर्भ्रांत।
जल सरिता का कल-कल कल-कल, उच्चारे अश्रांत।
मेघ गरजते बजे नगाड़े, दामिनि दीप्ति अपार।
सप्त स्वरों में करे भारती, झंकृत वीणा तार।
यही अनादिकाल से प्रचलित, होती आई रीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से, जीवन है संगीत।
धरा-चन्द्र रवि-ग्रह उपग्रह सब, सतत् करें संवाद।
सकल विश्व गुंजायमान है, गूँजे अनहद नाद।
मादकता रस घोल रही है, गुंजित कोकिल कूक।
कलरव कर संगीत सुनाएं, नहीं विहग भी मूक।
ब्रह्मानंद निमग्न योगिजन, स्तुतिरत प्रभु प्रीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से, जीवन है संगीत।
अलिगण गुंजन कमल प्रस्फुटन, कर नीरवता भंग।
प्राणिजगत में कोलाहल है, चढ़ा सभी पर रंग।
कर विस्मृत दुख द्वेष ईर्ष्या, मानव तू भी नाच।
यह जीवन अनमोल न दुख की, लगे कही भी आँच।
संकल्पित कर्तव्यशील जन, सदा मनाए जीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से जीवन है संगीत।
डॉ राजकुमारी वर्मा

Sunday, 23 March 2025

"प्रेम का तुम हो समुच्चय" - एक गीत

 

प्रेम का तुम हो समुच्चय प्रेम का प्रतिमान हो।
प्रेम बन कर बह रही जो सृष्टि का अवदान हो।

कर सके कैसे कलम नारी तुम्हारा आकलन।
माँ बहन बेटी सखी को लेखनी करती नमन।
वेद दृष्टा हो स्वयं ही तुम ऋचा का गान हो।
प्रेम बन कर बह रही जो सृष्टि का अवदान हो।

तुम कहीं हो उर्मिला सी और वैदेही कहीं।
हो अगम वन या महल तुम शक्ति बन पति की रहीं।
कर दिया यम को पराजित तुम वही पहचान हो।
प्रेम बन कर बह रही जो सृष्टि का अवदान हो।

देश पर जब आँच आई छोड़ आई आँगना।
हाथ में ले खड्ग लक्ष्मीबाई' सी वीरांगना।
शीश काटे शत्रुओं के देश की तुम शान हो।
प्रेम बन कर बह रही जो सृष्टि का अवदान हो।

रच रही नूतन कहानी हो रहा जय घोष है।
भर रही निज साधना से शक्ति का शुचि कोष है।
व्योम जल थल के स्वयं ही चढ़ चली सोपान हो।
प्रेम बन कर बह रही जो सृष्टि का अवदान हो।

*** सीमा गुप्ता 'असीम'

Sunday, 16 March 2025

खेले सब मिल होली - होली गीत

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, यह रसियों की टोली।
रंग अबीर गुलाल लगाते, खेले सब मिल होली।।

देवर भाभी खेले होली, भर पिचकारी डारे।
भीगे कपड़े तन-मन भीगे, लगे बहुत ही प्यारे।।
नीर-झील से गहरे इतने, मुखड़ें लगे नशीले,
हुरियारों की टोली जैसे, लगते सब हमजोली।
रंग अबीर गुलाल लगाते, खेले सब मिल होली।।

बरसाने की होली सबसे, लगे बहुत ही प्यारी।
लट्ठ-मार होली की देखो, महिमा सबसे न्यारी।।
लोक-गीत गा खूब रिझाते, ऐसी धूम मचाते,
भाव-विभोर किया गीतों ने, लगती मोहक़ बोली।
रंग अबीर गुलाल लगाते, खेले सब मिल होली।।

भेद-भाव को भूले सारे, सबको गले लगाते।
सरोबार तन-मन हो जाता, मिलकर सब हर्षाते।।
खुशी जताते फाग खेलते, कुछ पीकर ठंडाई,
जन-जन के इस प्रेम-पर्व में, करते हँसी ठिठोली।
रंग अबीर गुलाल लगाते, खेले सब मिल होली।।

*** लक्ष्मण लड़ीवाला 'रामानुज'

Sunday, 9 March 2025

पञ्चचामर छंद

 

न उम्र की ढलान हो न जोश में अपूर्णता।
न हौंसला डिगे कभी न हो कभी अधीनता।
बलिष्ठ रोगहीन हो विचार में प्रगाढ़ता।
निकृष्ट स्फूर्तिहीन आज त्याग दें दरिद्रता।।

सुहावने विहान को सदा निहारते चलो।
न पाँव ये थमें वसुंधरा बुहारते चलो।
क़ुसूर भूल-चूक जो सभी सुधारते चलो।
पुनः मिले न जिंदगी अभी सँवारते चलो।।

न भिन्नता न खिन्नता विषाद का विनाश हो।
नवीनता प्रफ़ुल्लता प्रसन्नता प्रकाश हो।
प्रवास आस प्यास हो सदा नई तलाश हो।
बिना प्रयास के जिए सुनो सजीव लाश हो।।

सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

Sunday, 2 March 2025

विनती सुनो हमारी - एक भक्ति गीत

 

हे शिव शंकर औघड़दानी, विनती सुनो हमारी।

उग्र महेश्वर हे परमेश्वर, शिव शितिकंठ अनंता।
हे सुरसूदन हरि कामारी, महिमा वेद भनंता।।
रुद्र दिगंबर हे त्रिपुरांतक, प्रभु कैलाश बिहारी।
हे शिव शंकर औघड़दानी, विनती सुनो हमारी।।

अष्टमूर्ति कवची शशि शेखर, देव सोमप्रिय नाथा।
गंगाधर अनंत खटवांगी, चरण धरूँ निज माथा।।
अनघ भर्ग सर्वज्ञ अनीश्वर, विश्वेश्वर रहा निहारी।
हे शिव शंकर औघड़दानी, विनती सुनो हमारी।।

सोम त्रिलोकेश्वर सुरसूदन, पाश विमोचन देवा।
भीम अंबिकानाथ कृपानिधि, नित्य करूँ मैं सेवा।।
शोक हरो प्रभु सकल विश्व के, सारा जगत दुखारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

Sunday, 23 February 2025

शुभ-शुभ - एक गीत

 

शुभ-शुभ शीत ग्रीष्म बरसात।
शुभ-शुभ प्रातः दिन अरु रात।

तेरा शुभ हो मेरा शुभ हो।
नहीं किसी का कभी अशुभ हो।
वैमनस्य कटुभाव रहे ना,
कहो वही जो रहे अचुभ हो।
शुभ-शुभ निकले मुख से बात।
शुभ-शुभ प्रातः दिन अरु रात।

रहे कामना सदा सुमंगल।
बोल कभी ना रहें अनर्गल।
मान प्रभू की इच्छा सुख-दुख,
मिले सुधारस या मिले गरल।
स्वस्थ मांनस हो पावन गात।
शुभ-शुभ प्रातः दिन अरु रात।

सुन्दर शुभकारी रहे सृष्टि।
रहे अपनी सकार की दृष्टि।
अधर मधुर मुस्कान सहेजें,
अमृत सी होती रहे वृष्टि।
शुभ-शुभ वृक्ष सुमन अरु पात।
शुभ-शुभ प्रातः दिन अरु रात।

डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday, 16 February 2025

भरोसा

 

विश्वास देकर
बिठाया था कंधे पर
अंतरिक्ष की अंगुली पकड़ाकर
दिखाया था धरती पर फैलता
विकास का उजाला,
पुचकार कर
खाली हथेलियों में भर दी थी गर्माहट
रच दिया था चलचित्र का भ्रम,
और मैं
अज्ञात भाषा के शोर में गुम
फावड़ा उठाकर ढहाता चला गया
गिरि- गोलोक, कन्दरा- मन्दिर,
उदधि- उद्भव, नक्षत्रों का छत्र, अतल का तल,
मनोयोग से खोद दी थी
ऋतुओं की गंध, फुहारों की लय,
कुनकुनी धूप, सरकती छांव,
मिटा दिए प्रकृति के सब आदिम पदचिन्ह,
अचानक नथुनों में भर गया धुआँ
बरसने लगे अंगारे,
छा गया अंधेरा
और अब मैं
विश्वास के साथ
अकेला खड़ा हूँ हाशिये पर,
भरोसा उठाने के लिए!
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डॉ.मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

जीवन है संगीत - एक गीत

  शाश्वत गुंजित प्रणवाक्षर का, सतत् चल रहा गीत। उतर मौन में सुनो ध्यान से, जीवन है संगीत। चले समीरण सर-सर सर-सर, गाती है निर्भ्रांत। जल सरित...