चले समीरण सर-सर सर-सर, गाती है निर्भ्रांत।
जल सरिता का कल-कल कल-कल, उच्चारे अश्रांत।
मेघ गरजते बजे नगाड़े, दामिनि दीप्ति अपार।
सप्त स्वरों में करे भारती, झंकृत वीणा तार।
यही अनादिकाल से प्रचलित, होती आई रीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से, जीवन है संगीत।
धरा-चन्द्र रवि-ग्रह उपग्रह सब, सतत् करें संवाद।
सकल विश्व गुंजायमान है, गूँजे अनहद नाद।
मादकता रस घोल रही है, गुंजित कोकिल कूक।
कलरव कर संगीत सुनाएं, नहीं विहग भी मूक।
ब्रह्मानंद निमग्न योगिजन, स्तुतिरत प्रभु प्रीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से, जीवन है संगीत।
अलिगण गुंजन कमल प्रस्फुटन, कर नीरवता भंग।
प्राणिजगत में कोलाहल है, चढ़ा सभी पर रंग।
कर विस्मृत दुख द्वेष ईर्ष्या, मानव तू भी नाच।
यह जीवन अनमोल न दुख की, लगे कही भी आँच।
संकल्पित कर्तव्यशील जन, सदा मनाए जीत।
उतर मौन में सुनो ध्यान से जीवन है संगीत।
डॉ राजकुमारी वर्मा