झूठा-सच्चा क्या है कैसे, लिखकर तुम्हें बताता हूँ,
ईश्वर का हूँ अंश कथन ये, कविता में नित गाता हूँ।
जो भी दिखता है सब तुमको, इसको झूठा ही मानो,
चार दिनों का मेला जग है, पर झूठा है ये जानो,
सच्चा ईश्वर जो चेतन है, गाकर उसको पाता हूँ।
तन झूठा है जग झूठा है, सच्ची-झूठी हैं बातें,
जीवन जग की बिना भजन के, सब झूठी ही हैं रातें,
झूठी माया झूठी काया पाकर क्यों इतराता हूँ।
जन्म झूठ है मरण झूठ है, सब रिश्ते- नाते झूठे,
झूठी काया मर जाती है, मरते ही जग ये छूटे,
छूटे नहीं अजर अविनाशी, सबको मैं दर्शाता हूँ।
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आचार्य राहुल शर्मा 'सिंधु'
फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश
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