नित्य यथार्थ कहे बन दर्पण दर्शन दोष करावत है।
जीवन-व्योम घिरें दुख-बादल धैर्य सदैव बॅंधावत है।
भाव समान रखे निज अंतस ऊॅंच न नींच जतावत है।
मित्र सदैव कहें उसको हम जो पथ सत्य दिखावत है।।
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*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"
हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के। हम सभी को जो दुलारे मुस्करा के।। रुप की रानी चहकती सी लगे जो, रजनीगंधा सी महकती ही रह...
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