Sunday 19 February 2023

मदिरा सवैया - जय शंकर

 

सिद्धि सदा शिव हो प्रथमा अधिगम्य रहे अणिमा अपनी।
शंभु उमा सह व्याप्त चराचर सुप्त न हो महिमा अपनी।
नित्य बहे रस छंद स्वतंत्र बसंत हरे लघिमा अपनी।
खेत हरे खलिहान भरे खिल फूट पड़े गरिमा अपनी।।

नेत्र त्रिनेत्र सुशोभित सुंदर कांति मनोहर शंकर की।
गंग बहे, शशिशेखर के विष कंठ धरे अभयंकर की।
नारद शारद शेष कहें जय पुण्य पुनीत शुभंकर की।
मातु-पिता गणनायक के हित बुद्धि करें इस किंकर की।।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी



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