Sunday, 27 March 2022

वह हाथ थमा देगा (गीत)

 


जीवन सागर की बूँदों में, यह सृष्टि समा देगा।
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
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करते कर्म जगत में जैसा, हम वैसा फल पाते,
बुरे कर्म का बुरा नतीजा, फिर क्यों अश्रु बहाते,
दुनिया में आये हैं जब हम, कर्म करें कुछ अच्छे...
मिला भाग्य से जब मानव तन, फिर क्यों व्यर्थ गँवाते,
लोभ-मोह वश अज्ञानी ही, अहंकार हैं करते 
 
भावी जो प्रारब्ध हमारा, क्यों दान-क्षमा देगा !
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
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दीन और दुखियों की सेवा, प्रभु की सेवा होती,
दया-धर्म निज हृदय बसा लो, ज्यों सीपी में मोती,
प्यार करे जीवों से जो वो, प्रिय जगती का होता...
स्नेह-भावना जब हिय जागे, कभी न करुणा सोती,
प्रेम और विश्वास जगाते, मानवता की आशा
 
नित ज्ञान-भक्ति के रंगों में, निज हृदय रमा देगा।
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
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सोच-सोच कर हम हारे हैं, क्या गुनाह होता है?
मन में सबके पापों का ये, बीज कौन बोता है?
घृणा, द्वेष जीवों की हिंसा, से अपना क्या नाता...
पाप-पुण्य की भूल-भुलैय्या, में मन क्यों खोता है?
कहीं पाप है पुण्य सरीखा, पुण्य पाप-सा दीखे
 
अब धर्म मनुज की राहों में, क्या पाँव जमा देगा?
गठरी पाप और पुण्यों की, वह हाथ थमा देगा॥
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कुन्तल श्रीवास्तव
डोंबिवली, महाराष्ट्र।

 

Sunday, 20 March 2022

होली गीत

 



सुपावन पर्व होली का लिए उल्लास आया है।
सुमन से रंग ले मनहर हवाओं ने लगाया है॥

क्षितिज का भाल सिंदूरी किया रवि ने उदय होकर -
जलाकर आरती का दीप , पूजा है दिशाओं ने।
बहारों ने बिखेरे फूल पथ पर प्रीति के गंधिल -
किया मदहोश जग सारा उतर उर में फिजाओं ने।

थिरकतीं शतदलों की पाँखुरी पर ओस की बूँदें -
भ्रमर को रास आई जिन्दगानी , मुस्कुराया है॥

गगन में प्रीति के बादल घिरे कुछ देर हैं बरसे -
नहाई झूमकर धरती सजाकर स्वप्न खुशियों के।
हृदय की कामनाओं ने गढ़े उपमान नव अनुपम -
सहेजे मन रहा अब तक सभी उनवान सुधियों के।

सरस - सम्भाव के पंछी खुले आकाश में उड़कर -
कहें इस जिन्दगी को प्यार से हमने सजाया है॥
दिशाओं ने बनाकर चित्र उसमें रंग खुशियों का -
भरा कुछ इस तरह चहुँओर गूँजी प्रीति - शहनाई।
गले मिल भावनाओं ने दिया संदेश है अनुपम -
समय की नाव ले खुशियाँ नदी-पथ से चली आई।

किनारे गाँव के आकर रुकी उपहार वितरण को -
निकट अपने सभी को प्यार से उसने बुलाया है॥

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ओम नारायण सक्सेना
शाहजहाँपुर [उत्तर प्रदेश]

Sunday, 13 March 2022

गीत - बढ़ा जगत में अत्याचार

 



हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।
शब्दों के कुछ तीर चुभाते, आदत से नेता लाचार।।

दिखला सकते अगर जगत को, व्योम बाँटकर दिखला दो।
सक्षम हो तो जरा लट्ठ से, नीर बाँटकर दिखला दो।।
टुकड़े टुकड़े किये जगत के, नहीं उन्हें अफसोस ज़रा।
लाशें बिछती सभी जगह पर, कब्रिस्तान बना संसार।
हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।।

भड़काते कुछ वाक युद्ध से, स्वार्थ साधते लोग यहॉं।
फूट-डालते उकसा कर के, बढ़ा भयंकर रोग यहाँ।।
द्रवित किया है मानव मन को, बढ़ते नर-संहारों ने।
भौतिक युग की चकाचौंध में, मन में बढ़ता गया विकार।
हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।।

कलियुग अपने चरम बिंदु पर, हृदय भरा आडम्बर हैं।
घात लगाते बियाबान में, छुपे हज़ारों खंजर हैं।।
युद्धों से इतिहास भरा है, सीख कहाँ लेता मानव।
समझौते पर टिकते रिश्ते, दिल से इस पर करें विचार।
हाल किया बेहाल जगत का, बढ़ा जगत में अत्याचार।।


लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday, 6 March 2022

युद्ध में औरतें

 



युद्ध लड़ते हैं सैनिक
बम, बन्दूक, तोप, मिसाइलों से
लिखते हैं विनाश की महागाथा,
औरतें युद्ध नहीं लड़तीं
पर युद्ध में चला हर हथियार प्रहार करता है,
औरत के तन पर!
युद्ध से पहले,
युद्ध में,
युद्ध के सालों बाद तक
युद्ध लड़तीं हैं औरतें!
विजेता राष्ट्र से,
पराजित राष्ट्र में
तन की समर भूमि पर,
अदृष्ट रहकर,
चीख-चीत्कार, दर्द-जख्म, आहें-ऑंसू ,
प्रताड़न और अपमान का
पुरस्कार झेलतीं हैं झोली में
रण वीरों के जयघोषों के बीच !
नहीं मिलेगा किसी शहीद स्मारक पर
किसी शहीद औरत का नाम!
हर शहीद की सलामी का बूट
पड़ता है औरत की छाती पर
और रक्तस्राव होता है कोख में!
नज़रों के भालों से छिद जाती है रोमावलियाॅं
तपती दृष्टियों से जल जाती है देहयष्टी,
पर औरतें कभी मरती नहीं हैं युद्ध में!
~~~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...