Saturday 23 October 2021

वेदना

 



वेदना कल्मष हृदय के दह रही है।
शब्द बन सारी कथाएँ कह रही है॥

देख औरों की व्यथा जब रो पड़े दिल,
वेदना के पुष्प जाते हैं तभी खिल,
शैल हिम-से जब पिघलते दर्द के हैं
आसमां रोता धरा जाती यहाँ हिल,
यह हृदय पीड़ा नदी-सी बह रही है।
शब्द बन सारी कथाएँ कह रही है॥1॥

वेदना-जल से हुआ हिय स्वच्छ-दर्पण,
देखता निज रूप कर सर्वस्व अर्पण,
आज करुणा से कलित प्रभु! इस हृदय की
भावनाएँ कर रहा मानव समर्पण,
सर्जना संवेदना कर गह रही है।
शब्द बन सारी कथाएँ कह रही है॥

व्याप्त पीड़ा इस जगत में हो हृदय की,
चेतना जब सुर जगाती लय-विलय की,
वेदनाएँ दूर हों निःस्वार्थ मन की
हो मनुज पर जब कृपा करुणा-निलय की,
दर्द कितना ज़िन्दगी यह सह रही है।
शब्द बन सारी कथाएँ कह रही है॥

कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

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