पत्थर को पूजे मगर, दुत्कारे इन्सान।
कैसे ऐसे जीव का, भला करे भगवान।1।
पाषाणों को पूजती, कैसी है सन्तान।
मात-पिता की साधना, भूल गया नादान।2।
पूजा सारी व्यर्थ है, दुखी अगर माँ -बाप।
इससे बढ़कर जगत में, नहीं दूसरा पाप।3।
सच्ची पूजा का नहीं, समझा कोई अर्थ।
कर्म बिना इस जगत में, अर्थ सदा है व्यर्थ।4।
मन से जो पूजा करे, मिल जाएँ भगवान।
पत्थर के भगवान में, आ जाते हैं प्रान।5।
झूठी पूजा से प्रकट , कैसे हों भगवान।
धन लोलुप तो माँगता, धन का बस वरदान।6।
चाहे पूजो राम तुम, चाहे पूजो श्याम।
मन में जब तक छल-कपट, व्यर्थ ईश का नाम।7।
सुशील सरना
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