Sunday, 17 May 2020
राह प्रभु दिखा ज़रा
हुई जटिल ज़िन्दगी, जीना हमें सिखा ज़रा।
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥
🌸
लोभ छल असत्य से, भरा समस्त है जहाँ।
फँसा है मोह में हिया, है प्रेय कामना यहाँ।
प्रकाश ज्ञान का करो, दीप्त कर शिखा ज़रा॥
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥1॥
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कठिन एक पाँव भी, निकालना हुआ यहाँ।
है मौत सामने खड़ी, कुठार ले जहाँ-तहाँ।
पीयूष बूँद से मिटा, ये लेख जो लिखा ज़रा॥
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥2॥
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दिन हैं मुश्किलों भरे, निशा डरावनी ठगे।
न जी सकें न ही मरें, दशा भयावनी लगे।
मिटे ये आपदा सभी, हो पूर्ण ये त्रिखा* ज़रा॥
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥3॥
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(*तृषा/लालसा)
*** कुन्तल श्रीवास्तव ***
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