ज़िन्दगी जीते हुए चाहे भरम ही पाल रख
दायरे में वक़्त के सिमटी ख़ुशी सम्भाल रख
कौन जाने कब कहानी का कथानक ख़त्म हो
जी भी रख हल्का ही अपना और कम जंजाल रख
क्यों समय को कोसना उसकी सधी रफ़्तार है
शर्त है पाबन्दगी की तो ये आदत डाल रख
अनसुनी अनहोनियों में काल का है रथ अभी
युग इसे भी हाँक लेगा हौसला हर हाल रख
मन रमा एकांत में आनन्द देती साधना
मीत तू भी इन पलों से रूह की लय-ताल रख
*** मदन प्रकाश ***
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