नीलाम्बर रक्ताभ हो रहा, सूरज अस्ताचल को जाय।
बादल के सँग आँख मिचौली, हर प्राणी के मन को भाय।।
शीतल किरणें सूर्य देव की, निरख निरख मन खुश हो जाय।
मलयाचल से पवन देव जी, देखो मंद-मंद मुस्काय।।
दिव्य क्षितिज की छटा निराली, स्वर्ग सुखों का देती भान।
इसी छटा को देख-देख कर, ऋषि-मुनि सब करते गुणगान।।
नीले-पीले बादल सारे, सबके मन को रहे लुभाय।
कविगण इसका वर्णन करते, संध्या देवि रही मुस्काय।।
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*** मुरारि पचलंगिया ***
बादल के सँग आँख मिचौली, हर प्राणी के मन को भाय।।
शीतल किरणें सूर्य देव की, निरख निरख मन खुश हो जाय।
मलयाचल से पवन देव जी, देखो मंद-मंद मुस्काय।।
दिव्य क्षितिज की छटा निराली, स्वर्ग सुखों का देती भान।
इसी छटा को देख-देख कर, ऋषि-मुनि सब करते गुणगान।।
नीले-पीले बादल सारे, सबके मन को रहे लुभाय।
कविगण इसका वर्णन करते, संध्या देवि रही मुस्काय।।
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*** मुरारि पचलंगिया ***
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