Sunday, 8 September 2019

*विदाई गीत*


वधू चली सजल नयन, गले सुमंजु हार है।
प्रयाण की नवल घड़ी, नया-नया विहार है॥

सिमट गई प्रकृति लजा, निकुंज कृष्ण-राधिका,
मिलन-घड़ी समीप शुचि, अनंग वाण-साधिका,
विधान नें नया-नया, विछोह गीत है लिखा,
तुहिन-प्रभा छलक गई, नया-नया चमन दिखा,
अनंत पुष्प खिल उठे, सुगंध की फुहार है।
प्रयाण की नवल घड़ी, नया-नया विहार है॥

घटा घुमड़ ढही कहीं, अनंत बिजलियाँ गिरें,
सुलोचना लजा रही, पलक-जलद झरें-झरें,
विवेचना कुचाल से, हुई अधीर कामिनी,
पवन गई ठहर-ठहर, हिमांशु-गात भामिनी,
नया-नया अशीष ले, कहीं मिले प्रहार है।
प्रयाण की नवल घड़ी, नया-नया विहार है॥

नयन सजे डरे-डरे, नई-नई कली खिली,
नए-नए प्रभात को, नई-नई किरण मिली,
विलास भास लास में, प्रभास हास है तरुण,
विभावरी रमें सदा, न पूर्व से उगे अरुण,
धुली धवल धरा नवल, अनंग-धनु बहार है।
प्रयाण की नवल घड़ी, नया-नया विहार है॥

*** सुधा अहलूवालिया ***

No comments:

Post a Comment

"फ़ायदा"

  फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...