Sunday, 29 September 2019

पिता

 

आधार सतत मेरे पद के ,
शुचि कर्मयोग,योगी ललाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।


तुमसे पाकर के यह काया।
धरती का शाश्वत सुख पाया।
उंगली को मेरी पकड़-पकड़,
तुमने ही चलना सिखलाया।
जब भी बहकी, उलझी, सिहरी-
बढ़कर हल दे डाले तमाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।


तन से कठोर, मन मृदुल भाव।
श्रीफल के जैसा है स्वभाव।
हर कदम लक्ष्य की ओर बढ़े-
खेती जैसे पतवार नाव।
अपने अनुभव के गहनों से-
पथ को देते गौरव मुकाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।


हे सृजक, सृजन के चिर नायक।
मन-मोद व्यंजना अरुणायक।
मेरे जीवन के शुचि अम्बर -
प्रेरणास्रोत मंगलदायक।
निज वरदहस्त रखना सदैव -
हो पाए न मुझसे लक्ष्य बाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।


*** सुनीता पाण्डेय 'सुरभि' ***

No comments:

Post a Comment

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...