आधार सतत मेरे पद के ,
शुचि कर्मयोग,योगी ललाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
तुमसे पाकर के यह काया।
धरती का शाश्वत सुख पाया।
उंगली को मेरी पकड़-पकड़,
तुमने ही चलना सिखलाया।
जब भी बहकी, उलझी, सिहरी-
बढ़कर हल दे डाले तमाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
तन से कठोर, मन मृदुल भाव।
श्रीफल के जैसा है स्वभाव।
हर कदम लक्ष्य की ओर बढ़े-
खेती जैसे पतवार नाव।
अपने अनुभव के गहनों से-
पथ को देते गौरव मुकाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
हे सृजक, सृजन के चिर नायक।
मन-मोद व्यंजना अरुणायक।
मेरे जीवन के शुचि अम्बर -
प्रेरणास्रोत मंगलदायक।
निज वरदहस्त रखना सदैव -
हो पाए न मुझसे लक्ष्य बाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
*** सुनीता पाण्डेय 'सुरभि' ***
धरती का शाश्वत सुख पाया।
उंगली को मेरी पकड़-पकड़,
तुमने ही चलना सिखलाया।
जब भी बहकी, उलझी, सिहरी-
बढ़कर हल दे डाले तमाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
तन से कठोर, मन मृदुल भाव।
श्रीफल के जैसा है स्वभाव।
हर कदम लक्ष्य की ओर बढ़े-
खेती जैसे पतवार नाव।
अपने अनुभव के गहनों से-
पथ को देते गौरव मुकाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
हे सृजक, सृजन के चिर नायक।
मन-मोद व्यंजना अरुणायक।
मेरे जीवन के शुचि अम्बर -
प्रेरणास्रोत मंगलदायक।
निज वरदहस्त रखना सदैव -
हो पाए न मुझसे लक्ष्य बाम।
हे पूज्य पिता! तुमको प्रणाम।
*** सुनीता पाण्डेय 'सुरभि' ***
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