Sunday, 22 September 2019
माँ
हर बला दुनिया की जाकर के कहीं सोती है
जब मेरी माँ की दुआ साथ मेरे होती है
आसमाँ फटता है बारिश भी बहुत होती है
जब कभी घर के किसी कोने में माँ रोती है
टुकड़े हों चार मगर पाँच हों खाने वाले
मुझे है भूख नहीं कहने को माँ होती है
रात उस एक की कीमत भला चुकाऊँ क्या
जब मेरे गीले किए बिस्तरे पे सोती है
सारी दुनिया के सभी रिश्तों से लम्बा रिश्ता
माँ मुझे नौ महिने फ़ालतु जो ढोती है
बेटे और बेटी में करती है फ़र्क़ ये दुनिया
माँ को बेटे की तरह बेटी प्यारी होती है
तू अपनी खाल की गर जूतियाँ बनवाए 'कपूर'
चूमते चूमते मर जाए वो माँ होती है
*** यशपाल सिंह कपूर ***
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
माता का उद्घोष - एक गीत
आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...

-
पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
-
जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
No comments:
Post a Comment