बंसी मधुर बजाए, रस-रंग फाग गाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
दृग-कोठरी घनेरी, शुचि झील का किनारा।
चितवन रसीली मंजु, रस पुंज का फुहारा।
उज्जवल मराल तन-मन, चित-चोर चत्त छाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
कोरी रही चुनरिया, बस श्याम रंग हो ली।
है इन्द्र-धनुष हारा,शुभ पर्व आज होली।
अब रंग नहीं कोई, जो स्वयं सिद्धि पाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
है भोर रश्मि स्वर्णिम, सौरभ सनें भँवर-दल।
प्रति पुष्प नेह रंजित, प्रति पात तुहिन हल-चल।
मन तो रंगा अभी है, चूनर न भीग जाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
*** सुधा अहलूवालिया ***
चितवन रसीली मंजु, रस पुंज का फुहारा।
उज्जवल मराल तन-मन, चित-चोर चत्त छाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
कोरी रही चुनरिया, बस श्याम रंग हो ली।
है इन्द्र-धनुष हारा,शुभ पर्व आज होली।
अब रंग नहीं कोई, जो स्वयं सिद्धि पाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
है भोर रश्मि स्वर्णिम, सौरभ सनें भँवर-दल।
प्रति पुष्प नेह रंजित, प्रति पात तुहिन हल-चल।
मन तो रंगा अभी है, चूनर न भीग जाए।
गोपी सनी विरह में, है श्याम-रस लगाए।।
*** सुधा अहलूवालिया ***
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