एकान्त को मधुर स्वर देतीं
द्वार खटखटा रही थीं
सूर्य रश्मियाँ
पाषाणों में
रूप का आभास देतीं,
कुछ नये तराने
सजा रही थीं
सूर्य रश्मियाँ
दूर-दूर तक बह रहीं
एक दीर्घ आलाप-सी
रंगों से सजी लहरें
मन मुग्ध कर रहीं थीं
ये सूर्य रश्मियाँ
रेत के कण
मानों बोल रहे
आ बैठ दो पल
देख,
कितना आनन्द देती हैं
ये सूर्य रश्मियाँ
न सोच कि
उदित होता है या अस्त
बस यह देख
कि आनन्द का सागर हैं
ये सूर्य रश्मियाँ
*****************
*** कविता सूद ***
रूप का आभास देतीं,
कुछ नये तराने
सजा रही थीं
सूर्य रश्मियाँ
दूर-दूर तक बह रहीं
एक दीर्घ आलाप-सी
रंगों से सजी लहरें
मन मुग्ध कर रहीं थीं
ये सूर्य रश्मियाँ
रेत के कण
मानों बोल रहे
आ बैठ दो पल
देख,
कितना आनन्द देती हैं
ये सूर्य रश्मियाँ
न सोच कि
उदित होता है या अस्त
बस यह देख
कि आनन्द का सागर हैं
ये सूर्य रश्मियाँ
*****************
*** कविता सूद ***
No comments:
Post a Comment