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मैं गीत लिखती हूँ धरा के - एक गीत
हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के। हम सभी को जो दुलारे मुस्करा के।। रुप की रानी चहकती सी लगे जो, रजनीगंधा सी महकती ही रह...
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अंधकार ने ली विदा, ऊषा का आगाज़। धानी चूनर ओढ़ ली, धरती ने फिर आज।।1।। अम्बर से ऊषा किरण, चली धरा की ओर। दिनकर की देदीप्यता, उतरी ...
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मानसरोवर में सबको ही, सुंदर दृश्य लुभाता। हंस हंसिनी विचरण करते, धवल रंग से नाता।। सरस्वती के वाहन होकर, हंसा मोती चुगते। शांत भाव के...
SHANDAR ...
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