Sunday, 13 January 2019

अपने पर खोल रही



नभ में अपना बल तोल रही।
चिड़िया अपने पर खोल रही।


संशय न रहे किसके मन में,
किसका प्रिय! चित्त अडोल रहा।
वह कौन भला चित का नद है,
जिसमें न कभी बहु द्वंद्व बहा।।


अवसर सब जीवन के निशिदिन।
वह खूब टटोल-टटोल रही।।


जिसको बहु अन्न मिला जग में,
वह आलस में न उठा न चला।
जिसके सपने सब सत्य हुए,
वह त्याग धरा न हिला न डुला।।


उसकी सुधि में अपनी धरती।
नभ में वह यद्यपि डोल रही।।


गति जीवन की सबकी कठिना,
सबको पड़ता डग भी भरना।
जब ढोल-मृदंग बजें विधि के,
उनपे सबको पड़ता नचना।।


उड़ती स्वर में मृदु गीत लिए।
करती हर भोर किलोल रही।।


*** पंकज परिमल***

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