Sunday, 7 October 2018
क्या करें - एक ग़ज़ल
विष भरे जिसके हृदय हो प्यार उनसे क्या करें
है पड़ोसी दुष्ट तो व्यवहार उनसे क्या करें
घात करते रोज उनके कर्म सब नापाक हैं
कब्र में जा खुद छिपे जो रार उनसे क्या करें
चाहते मिलना गले पर हाथ में लेकर छुरी
चाल जिनकी छल भरी सहकार उनसे क्या करें
चेतना जिनकी दबी अज्ञानता के बोझ से
मूढ़ता भारी भरी तकरार उनसे क्या करें
गिद्ध सारे नोचते विश्वास की मृत देह को
कामना जिनकी हवस अभिसार उनसे क्या करें
कर्म से मन से वचन से जो समर्पण कर चुका
भूख जिसको ज्ञान की इंकार उनसे क्या करें
धर्म पथ पर देह आहत क्या करें अनजान हम
गैर है चारों तरफ़ मनुहार उनसे क्या करें
*** भीमराव झरबड़े "जीवन" बैतूल
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