छट जाये तमस घनेरा।
जब जागो तभी सवेरा।।
आदिम युग से आज तलक कुछ, अग्रज चलते आये।
हमने तो बस पद चिन्हों पर, उनके कदम बढ़ाये।।
जान न पाये झूठ सत्य का, कहाँ कौनसा डेरा।
छट जाये तमस........ (1)
सबने अपने अपने हित के, निज बाजार सजाये।
औरों को भरमाया कुछ ने, साझे सत्य कराये।।
कोई था उपकारी केवल, कोई बना लुटेरा।
छट जाये तमस....... (2)
आओ यारों बने हंस हम, सच पय पान करेंगे।
निज स्वारथ सी त्याग बुराई, जन कल्याण करेंगे।
आओ खोलें ज्ञान चक्षु हम, जिन्हें तमस ने घेरा।।
छट जाये तमस..... (3)
*** भीमराव झरबड़े "जीवन" बैतूल ***
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